इंसान के दिल और दिमाग में अगर काम के प्रति जुनून हो और कुछ बनने की ख्वाहिश हो तो वो क्या नहीं कर सकता, उसके लिए यह कोई मायने नहीं रहता की वो गाँव से है या शहर से। UP के मुजफ्फरनगर के एक छोटे से बुढ़ाना गाँव के होने के बावजूद भी अपनी लगन और मेहनत से हिंदी सिनेमा में अपनी एक छाप छोड़ी हुई है।
अपनी स्टडी पूरी करने के बाद वह छोटी मोटी नौकरी करने लगे, लेकिन नौकरी में मन ना लगने की वजह से वह कुछ ही समय में दिल्ली आ गए। नवाजुद्दीन सिद्दीकी का दिल्ली आने का मकसद केवल एक्टर बनने का था और उन्होंने साक्षी थिएटर ग्रुप को ज्वाइन किया और वही से एक्टिंग सीखने लगे। इसी थिएटर में नवाजुद्दीन की मुलाक़ात मनोज बाजपेई और सौरभ शुक्ला से हुई। नवाजुद्दीन एक्टिंग तो सीख रहे थे, लेकिन उसके पास अभी तक आय का कोई स्रोत नहीं था जिनकी वजह से वो दिल्ली में अपना गुजारा कर सके। इसलिए संघर्ष के दिन में वो नॉएडा दिल्ली में टॉयज बनाती एक फैक्ट्री में सिक्योरिटी गार्ड की जॉब करने लगे और शाम को फिर साक्षी थिएटर में एक्टिंग सिखने आते थे। कुछ समय बाद, नवाजुद्दीन सिद्दीकी (नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी) ने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा (NSD) को ज्वाइन किया और 1996 में यहाँ से पासआउट होने के बाद वह एक्टर बनने के लिए सन 2000 में मुंबई आ गए। मुंबई में उनको कोई पहचानता नहीं था और ना ही उनका कोई गॉडफादर था, जो उनका हाथ थाम सके। मुंबई की मायानगरी में काफी ठोकरे खाने के बाद नवाजुद्दीन को अहसास हो गया था की यह सफर इतना आसान नहीं है जितना वो सोचा करते थे। नवाजुद्दीन सिद्दीकी के दिमाग मेंएक्टिंग का कीड़ा बनने की एक ही धून सवार थी, लेकिन यह सपना कैसे पूरा होगा वो उनको भी पता नहीं था। उन्होंने इसके लिए हार नहीं मानी और जहा भी फिल्म्स के लिए इंटरव्यू होते थे वह सिद्दीकी पहुंच जाते थे, लेकिन हर बार उनको रद्द कर दिया जाता था। नवाजुदीन सिद्दीकी बार बार के रद्द से थक चुके थे और वह अब गाँव भी नहीं जा सकते थे, क्योंकि वापस गाँव चले जाते तो गाँव वालों के ताने भी सुनने पड़ते। कुछ समय बाद, नवाजुद्दीन को कुछ एक टेलीविज़न सीरियल्स में काम करने का मौका मिला, लेकिन यहाँ पर उनका रोल छोटा रहता था, जिसकी वजह से वो अपने आपको प्रूव नहीं कर पाते थे। नवाजुद्दीन सिद्दीकी को पहला ब्रेक 1999 में आमिर खान की फिल्म सरफ़रोश से मिला, लेकिन इस फिल्म में उनका रोल बहुत छोटा था। अब उनको छोटे मोटे रोल मिलने लगे थे। उनको खुद पर यकीन था की आज नहीं तो कल, या परसो वह एक दिन बॉलीवुड के सुपरस्टार जरूर बनेंगे। कहते है की “कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।”, अगर आप कोशिश करोगे तो आपको सफलता अवश्य मिलेगी।
- सन 2010, नवाजुद्दीन सिद्दीकी के लिए बेस्ट टर्निंग पॉइंट रहा। उनको 2010 में पीपली लाइव फिल्म के लिए पत्रकार के रोल में सेलेक्ट किया गया, जो उनके लिए बहुत बड़ी बात थी, क्योंकि अब लोग उनको पहचान ने लगे थे। उसके बाद उनको Gangs of Wasseypur – Part 1 फिल्म से असली पहचान मिली, जो 2012 में रिलीज़ हुई एक ड्रामा फिल्म थी। उस फिल्म में उनकी एक्टिंग को काफी लोग ने सहारा। उसके बाद उन्होंने काफी फिल्मे की जैसे की
- The Lunchbox (2013),
- Badlapur (2015),
- Bajrangi Bhaijaan (2015),
- Freaky Ali (2016),
- Raman Raghav 2.0 (2016)
- Raees (2017)
